आलेख परिचय इतिहास
पहले बांग्ला कॉमिक-स्ट्रिप सुपरहीरो के जनक नारायण देबनाथ का प्रथम पुण्यतिथी पर स्मरण
18 जनवरी, 2022 को, भारतीय कॉमिक निर्माता और चित्रकार नारायण देबनाथ का कोलकाता में 96 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। आज पहली पुण्यतिथि पर स्मरण।
कलाकार की कल्पना की उड़ान से बांग्लादेश पहुंचे टिनटिन
एक बांग्लादेशी कार्टूनिस्ट फैन आर्ट "बांग्लादेश में टिनटिन" द्वारा "द एडवेंचर्स ऑफ टिनटिन" की पुरानी यादें ताजा कर रहे हैं, पर एक ट्विस्ट के साथ।
जब महात्मा गांधी ने म्यांमार में अहिंसात्मक क्रांति का प्रचार किया
"मेरे पास आपको देने हेतु और कोई मार्गदर्शन नहीं है कि आप अपना ध्यान अहिंसा के सामान्य सिद्धांत पर यानी आत्म-शुद्धि पर लगायें। "
बांग्लादेशी शादियों में सांस्कृतिक बदलाव के चलते बदल रहा है खानपान
यद्यपि बांग्लादेशी विवाहों में परोसे जाने वाले व्यंजनों में बदलाव शुरू हो गया है, एक बात फिर भी कायम है - ये स्वादिष्ट होते हैं।
जॉर्जिया के पांच वर्षीय राजकुमार की हुकूमत के लिए तैयारी
"यह एक बड़ी घटना थी कि दो सौ साल बाद जॉर्जिया के राजकुमार के रूप में एक बच्चा बपतिस्मा हुआ"
जापान : यौन दासियों की लंबित मांगों पर ध्यान खींचते वीडियो
द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के साठ साल से अधिक बीत जाने के बाद भी जापानी सेना के आदेशों के तहत अपहृत की गई स्त्रियाँ अब भी न्याय की बाट जोह रही हैं. इन स्त्रियों को सैनिक “आराम गृहों (कम्फ़र्ट स्टेशन) ” में यौन दासियों के रूप में जबरिया...
रूसः ओका
टर्किश इंवेज़न ओका नामक कार के बारे में लिखते हैं, “मास्को में पिज्ज़ा डेलिवरी के लिये ओका कार का भारी प्रयोग होता है, क्योंकि जाहिर तौर पर सर्दियों में बाईक चलाने की तुलना में यह ज्यादा गर्म रहता है। पर इसे चलाने वाले शौकीन अब मुट्ठी भर ही बचे हैं,...
यूक्रेनः प्रदर्शनी का सच?
मॉस्को में होलोडोमोर प्रदर्शनी में कलाविध्वंस (वैंडेलिज़्म) की घटना पर वहाँ के मेयर युरी लुज़कोव ने कहा, “मुझे लगता है कि इस प्रदर्शनी का बस एक ही मकसद थाः रूसी और युक्रेनी लोगों का एका तोड़ना और उनमें दरार पैदा करना।” यूक्रेनियाना इस तर्क को होलोकास्ट के परिपेक्ष्य में भी...
गाँधी के बाद भारत
लॉ एंड थिंग्स रामचंद्र गुहा की किताब “इंडिया आफ्टर गाँधी” की विभिन्न समीक्षाओं के बारे में लिख रहे हैं।
आर्मीनियाः खुला पत्र
तुर्की लेखक व चिट्ठाकार मुस्तफा अक्योल की आर्मीनियाई जातिसंहार विषय पर आप्रवासी आर्मीनियाई को लिखे खुले पत्र का जवाब “लाईफ इन आर्मीनिया” चिट्ठे के लेखक रफी ने तुर्की नागरिकों को लिखे अपने खुले पत्र से दिया है। 1915 से 1917 के बीच हुई घटनाओं को जातिसंहर का दर्जा देते हुये...