क्या बांग्लादेश समुद्र में डूबने वाला है?

वातावरण परिवर्तन के दुष्प्रभावों से सर्वाधिक पीड़ित होने वाले राष्ट्रों में बांग्लादेश का नाम सबसे पहले आता है. नदी के डेल्टा में स्थित होने के कारण वैश्वीय ऊष्मीकरण से समुद्री स्तर के बढ़ने के कारण समूचे बांग्लादेश के समुद्र में डूबने का खतरा सबसे ज्यादा है. बांग्लादेश पर जलीय खतरे व आपदाएँ नए नहीं हैं क्योंकि नदियों में अकसर बाढ़ आती रहती हैं और इसकी वजह से तीव्र बाढ़ के दिनों में इस देश का बड़ा हिस्सा पानी में डूब जाता है और लाखों लोग बेघर हो जाते हैं. परंतु इस देश के जीवट नागरिक इन आपदाओं का सामना करते हुए राष्ट्र की प्रगति के लिए हर बार उठ खड़े होते हैं. 

 
चित्र साभार : देश कालिंग

हालांकि समुद्री जल स्तर के बढ़ने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता,  मगर हालिया मीडिया रपटें कुछ ज्यादा ही कह रही हैं कि बांग्लादेश इस सदी के अंत तक समुद्री लहरों में समा जाएगा . इस किस्म के विचारों को मीडिया तथा ब्लॉग जगत में ढेरों आलोचनाओं का सामना करना पड़  रहा है.

लेखक व स्तंभकार अनीजुल हक प्रियो.कॉम में  लिखते हैं :

বাংলাদেশ ডুবে যাবে−এই আওয়াজটা এত জোরেশোরে উঠল কেন? সম্প্রতি নাসা থেকে এ সংক্রান্ত একটা পূর্বাভাস দেওয়া হয়েছে। এ সবই করা হয় বৈশ্বিক উষ্ণায়ন বন্ধে জাতিসমূহকে সতর্ক ও সক্রিয় করে তোলার জন্যে। কিন্তু সব সময়ই বলির পাঁঠা বানানো হয় বাংলাদেশকে। সমুদ্রপৃষ্ঠ যদি উঁচু হয়, তাহলে শুধু বাংলাদেশ একা ডুববে, আর পৃথিবীর কোথাও কারও কোনো ক্ষতি হবে না, তা তো হয় না।…পৃথিবীর বহু বড় শহর আছে, সমুদ্রপৃষ্ঠের নিচে যাদের অবস্থান; সমুদ্রের পানি উঁচু হলে সেই সব শহরের কী হবে?

आखिर ये चिल्ल-पों क्यों मचाई जा रही है कि बांग्लादेश समुद्र में डूब जाएगा? हाल ही में नासा की एक रपट में भी यही भविष्यवाणी की गई है. इस तरह की रपटें इस लिए जारी की जाती हैं ताकि लोगों में जागृति फैले और वे वैश्वीय ऊष्मीकरण को कम करने के कुछ उपाय करें. परंतु ऐसा करते समय सिर्फ बांग्लादेश को ही बलि का बकरा बनाया जाता है. जब समुद्री जल स्तर बढ़ेगा तो क्या सिर्फ बांग्लादेश ही पानी में डूबेगा और किसी अन्य देश का बाल भी बांका नहीं होगा? ऐसा कैसे हो सकता है… विश्व में बहुत से ऐसे शहर हैं जो समुद्री जल स्तर से नीचे हैं. तो जब समुद्री जल स्तर बढ़ेगा तो उन शहरों का क्या होगा?

एक समाचार पत्र में प्रकाशित  रपट का उद्धरण देते हुए देश कालिंग बताते हैं कि एक बांग्लादेशी वैज्ञानिक के अनुसार, तलछट के जमने के कारण बांग्लादेश प्रतिवर्ष 20 वर्ग किलोमीटर की दर से बढ़ रहा है :

इस तरह अगले 50 वर्षों में बांग्लादेश के क्षेत्रफल में 1000 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि होगी. 

बांग्ला ब्लॉगिंग समुदाय सचलयतन में इस विषय ने रोचक वादविवाद को जन्म दिया. हिमू का तर्क था कि यह खतरा महज अफवाह नहीं है, बल्कि इस बात में काफी दम है. पापुआ न्यू गुयाना, ऑस्ट्रेलिया तथा तस्मानिया समुद्री जल स्तर के बढ़ने की इस वजह से ही अलग हुए. 

सिराज  इस पोस्ट में टिप्पणी करते हैं:

বৈশ্বিক উষ্ণায়নের এই ব্যাপক ধুঁয়া আসলে জ্বালানী রাজনীতির এক খেলা। ইমারজিং এশিয়ার ব্যাপক জ্বালানী চাহীদাকে নিয়ন্ত্রন এবং উন্নত প্রযুক্তির বিপনণই এর প্রধান উদ্দেশ্য।

वैश्विक तापीयकरण का हो हल्ला महज ऊर्जा संबंधी राजनीतिक-खिलवाड़ है. मुख्य लक्ष्य तो आगे बढ़ते एशिया की ऊर्जा आवश्यकताओं पर लगाम लगाना है तथा अपनी तकनॉलाजी को इन बाजारों में बेचना है. 

फ़ारूख़ वासिफ़ भी टिप्पणी करते हैं:

বাংলাদেশের ভেতরে এবং বৈশ্বিকভাবেও একটা মত জোরালো হচ্ছিল যে, যাদের কারণে আমরা ক্ষতিগ্রস্থ হচ্ছি, তাদের এর ক্ষতিপূরণ দিতে হবে। এরকম একটি কাজ যখন এগিয়ে যাচ্ছিল এবং বাংলাদেশের কিছূ ক্ষতিপূরণ পাবার সম্ভাবনা দেখা দিচ্ছিল, তখনই বিশ্বব্যাংক নাক গলায়। তারা ক্ষতিপূরণের বদলে, ক্লাইমেট ফান্ড গঠনের প্রস্তাব নিয়ে হাজির হলো। এরা দেশের ভেতরে কিছু প্রচারকও পাঠাল।….এরা আহাজারি করা শুরু করলো যে, বাংলাদেশ ডুববেই। এর জন্য নতুন প্রযুক্তি দরকার, নতুন বিনিয়োগ দরকার। ব্যস হয়ে গেল। যা বাংলাদেশ ক্ষতিপূরণ হিসেবে পেত, তা এখন আসবে ঋণ হিসেবে। এবং তার পরিমাণ দুই বিলিয়ন ডলার!

बांग्लादेश के भीतर तथा तमाम विश्व में यह गंभीर विचार हो रहा है कि जिन देशों के कारण वैश्विक ऊष्मीकरण हो रहा है वे प्रभावित देशों को मुआवजा प्रदान करें. जब इस कार्य को अमलीजामा पहनाया जा रहा था और बांग्लादेश को कुछ मुआवजा मिलने वाला था तभी विश्वबैंक ने अड़ंगा लगा दिया. उन्होंने क्लाइमेट फंड (विश्व बैंक द्वारा नियंत्रित) का प्रस्ताव दिया. उन्होंने इस देश में कुछ उपदेशक भेजे. ये उपदेशक जहाँ तहाँ ये रोना रोने लगे कि बांग्लादेश का समुद्र में डूबना तय है. और आने वाले इस हादसे से बचने के लिए नई तकनीक आवश्यक है, नए निवेश आवश्यक हैं. बात इतनी ही है. बांग्लादेश को जो मुआवजा मिलने वाला था, अब वो उसे ऋण के रूप में मिलेगा. और 20 अरब अमरीकी डॉलर की रकम कोई कम नहीं है !

बांग्ला क्रिकेट फ़ोरम में एक  परिचर्चा चली जो डेली स्टार समाचार पत्र में छपे विज्ञापन “बांग्लादेश का डूबना: सत्य या कोरी कल्पना?“ पर केंद्रित रही थी. आमतौर पर परिचर्चा में यह माना गया कि इस तरह का ऋणात्मक प्रचार देश के विकास में बाधा डालेगा और निवेशक इस देश से दूर ही बने रहेंगे. समुद्री सतह से नीचे के देश हालैंड के सफल भूमि प्रबंधन का उदाहरण देते हुए यहाँ बताया गया कि बांग्लादेश को वास्तविक खतरा जनसंख्या विस्फोट से है न कि समुद्री जल स्तर बढ़ने से.

टिप्पणीकार नाइसमैन70 ने फोरम में कहा:

इस दुनिया में यह बहुत जरूरी है कि आप हमेशा धनात्मक सोचें और साथ में अपनी समस्याओं के हल के लिए काम करते रहें.

तो, बांग्लादेश के समुद्र में डूबने का अफवाह फैलाकर लोगों में भय पैदा करने के बजाए, वातावरण परिवर्तन से होने वाले प्रभावित देशों में इस तरह की समस्याओं से निपटने के लिए ठोस उपाय किए जाने चाहिएं और धूर्तता भरी राजनीति नहीं की जानी चाहिए.

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